मातृस्मृति को जनसेवा में बदलने का अनुपम उदाहरण डॉ. राजेश्वर सिंह की रामरथ यात्रा

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ब्राम्ह अनुभूति अखबार यूपी लाइव न्यूज 24 उत्तर प्रदेश

संपादक प्रवीण सैनी

गाँव-गाँव तक पहुँच रही है रामभक्ति : विधायक की पहल से आस्था बन रही है जनआंदोलन

लखनऊ सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह द्वारा अपनी माता स्व. तारा सिंह की स्मृति में आरम्भ की गई रामरथ श्रवण अयोध्या यात्रा अपनी 47वीं कड़ी तक पहुँच चुकी है। विधायक डॉ. सिंह द्वारा संचालित यह निःशुल्क बस सेवा सरोजनीनगर में सेवा और श्रद्धा को समाज हित से जोड़ने का अद्वितीय उदाहरण बन चुकी है।

डॉ. सिंह ने अपनी माँ की स्मृति को केवल भावनाओं तक सीमित न रखकर उसे जनसेवा का रूप दिया। इस परंपरा के अंतर्गत वह प्रत्येक पखवाड़े किसी न किसी गाँव के बुजुर्गों और मातृशक्ति को अयोध्या धाम दर्शन का अवसर उपलब्ध कराते हैं।

इसी क्रम में, सोमवार को आयोजित 47वीं यात्रा में ग्राम पंचायत परवर पश्चिम के श्रद्धालुओं ने इस दिव्य अनुभव का लाभ उठाया।

*यात्रा की झलकियाँ :*
1. विधायक की टीम द्वारा सुबह गाँव पहुँचकर तीर्थयात्रियों का सम्मानपूर्वक स्वागत किया गया और उन्हें अंगवस्त्र पहनाकर बस में बिठाया गया।

2. पूरी यात्रा के दौरान विधायक की टीम के स्वयंसेवक श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु भोजन, जलपान और स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था में तत्पर रहे।

3. अयोध्या में श्रद्धालुओं ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर, हनुमानगढ़ी, सरयू घाट, कनक भवन जैसे प्रमुख स्थलों के दर्शन किए।

4. बुजुर्ग श्रद्धालुओं को सहज सुविधा मिले, इसके लिए लोकल आवागमन के लिए भी बैटरी रिक्शा की व्यवस्था भी की गई।

5. प्रत्येक यात्री को श्रीमद्भागवत गीता और प्रसाद भेंट की गई और बस द्वारा ही गाँव तक पहुँचाया गया।

*आस्था और सेवा का संगम :*
इस यात्रा ने उन ग्रामीणों के लिए, जिनके लिए अयोध्या दर्शन जीवनभर का सपना था, उसे वास्तविकता में बदल दिया। साथ ही, यह यात्रा केवल धार्मिक अनुभव तक सीमित न रहकर सामाजिक सौहार्द, सहयोग और समरसता का सशक्त माध्यम भी बनी।

यात्रा के दौरान बुजुर्गों की आंखों में छलकते आंसू और मातृशक्ति के चेहरे पर झलकती संतोष भरी मुस्कान ने यह सिद्ध कर दिया कि यह यात्रा केवल दर्शन का साधन नहीं, बल्कि यह भक्ति, सेवा और समाज की सामूहिक आस्था का उत्सव है।

डॉ. राजेश्वर सिंह के इस अनूठे प्रयास ने अयोध्या यात्रा को एक सामाजिक-आध्यात्मिक आंदोलन का स्वरूप दिया है, जहां श्रद्धा केवल व्यक्तिगत अनुभव न रहकर सामूहिक भावनाओं का प्रतीक बन गई है।

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