जाति, क्षेत्र और परिवार की राजनीति – भारत की प्रगति का सबसे बड़ा अवरोध : डॉ. राजेश्वर सिंह

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ब्राम्ह अनुभूति अखबार यूपी लाइव न्यूज 24 उत्तर प्रदेश

संपादक प्रवीण सैनी लखनऊ

जातिवाद भारत की आत्मा पर प्रहार है; अब समय है राष्ट्र की राजनीति के पुनर्जागरण का – डॉ. राजेश्वर सिंह

लखनऊ वरिष्ठ भाजपा नेता एवं सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने सोमवार को अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक गहन विचारोत्तेजक संदेश जारी करते हुए कहा कि, “जब राजनीति मिशन थी, तब भारत बढ़ा; जब राजनीति जाति आधारित हुई, तब भारत रुक गया।” उन्होंने कहा कि आजादी के बाद राजनीति का अर्थ था राष्ट्र सेवा, विकास और परिवर्तन, परंतु समय के साथ राजनीति का चरित्र बदल गया “सेवा” की जगह “समीकरण” और “समीकरण” की जगह “जाति” ने ले ली।

*जातीय दलों ने राष्ट्रीय एकता को कमजोर किया :*
डॉ. सिंह ने अपने संदेश में कहा कि भारत के कई प्रांतों में कुछ दलों ने जाति और क्षेत्रीयता को स्थायी राजनीतिक पूँजी बना लिया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी, राजद, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, अकाली दल जैसे दलों ने अपने-अपने राज्यों में जातीय और क्षेत्रीय पहचान की राजनीति को राष्ट्रहित से ऊपर रख दिया। इन दलों ने अपने मतदाताओं को यह सिखाया कि- जाति बचाओ, प्रदेश बचाओ; पर राष्ट्र की बात कोई न करे।

*राजनीतिक जातिवाद के परिणाम – प्रशासनिक गिरावट से विकास अवरोध तक :*
डॉ. सिंह ने विस्तार से बताया कि जाति आधारित राजनीति ने न केवल राष्ट्रीय एकता को आघात पहुँचाया, बल्कि शासन व्यवस्था को भी कमजोर किया।
उन्होंने कहा कि योग्यता की जगह जातीय वफादारी को प्राथमिकता दी गई, जिससे प्रशासनिक तंत्र में निष्पक्षता और मेरिट का पतन हुआ।

बिहार और उत्तर प्रदेश के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, “1990 से 2015 के बीच, जब जातीय समीकरण आधारित राजनीति चरम पर थी, इन राज्यों की विकास दर 3% से भी कम रही। वहीं गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे नीति-आधारित राज्यों ने 7–8% की गति से विकास किया।”

*जातीय राजनीति के दुष्परिणाम – नीति से लेकर समाज तक :*
जाति-आधारित राजनीति ने भारत की नीति-निर्माण प्रक्रिया और सामाजिक एकता, दोनों को गहराई से प्रभावित किया है। जब संसद में निर्णय राष्ट्रहित के बजाय जातीय वोट-बैंक के गणित पर होने लगते हैं, तब देश की नीतिगत दिशा कमजोर पड़ जाती है। GST, शिक्षा सुधार, महिला आरक्षण और समान नागरिक संहिता जैसे राष्ट्रहित के कानून वर्षों तक इसलिए अटके रहे क्योंकि कुछ दलों ने जनहित से ऊपर जातीय हित को रखा। यह प्रवृत्ति केवल विकास को नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा को भी चोट पहुँचाती है। जाति-आधारित राजनीति ने जनता के बीच स्थायी अविश्वास बो दिया – हर समुदाय “दूसरे” के विरुद्ध खड़ा कर दिया गया, और सामाजिक सौहार्द व ‘एक भारत’ की भावना धीरे-धीरे कमजोर पड़ गई। “जो दल समाज को जातियों में बाँटते हैं, वे भारत के संविधान और सनातन की आत्मा को ठेस पहुँचाते हैं।”

*“जाति वोट नहीं, जहर है” – युवाओं से सीधा आह्वान :*
डॉ. सिंह ने युवाओं से अपील करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि युवा जातिवादी राजनीति को अस्वीकार करें और राष्ट्रवादी सोच को अपनाएँ। “सामाजिक न्याय का अर्थ अवसर देना है, समाज को तोड़ना नहीं,” उन्होंने लिखा। उन्होंने कहा कि युवाओं को समझना होगा कि जाति की राजनीति तात्कालिक सत्ता दे सकती है, लेकिन आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को नष्ट कर देती है।

*समाधान और राष्ट्रनीति की दिशा :*
अब समय है कि भारत जातीय समीकरणों की राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय विचारधारा और सुशासन की राजनीति को अपनाए।
समाधान स्पष्ट है –
(I) राष्ट्रीय विचारधारा को प्राथमिकता दो — भारत पहले, बाकी बाद में।
(II) विकास और सुशासन की राजनीति को बढ़ाओ।
(III) युवाओं को बताओ कि जाति वोट नहीं, जहर है।
(IV) सामाजिक न्याय का अर्थ अवसर दो, न कि समाज तोड़ो।
(V) जो एकता की बात करे उसे सशक्त करो, जो जाति की बात करे उसे अस्वीकार करो।
क्योंकि, “जब भारत जातियों में बँटता है, तब राष्ट्र का भविष्य सिकुड़ता है; और जब भारत एक होता है, तब विश्व भारत की ओर देखता है।”

*राष्ट्र की राजनीति ही भारत का भविष्य :*
अपने संदेश के अंतिम भाग में डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा, “जो भारत को जोड़ता है, वही सच्चा देशभक्त है। जो भारत को बाँटता है, वह इतिहास में लांछित रहेगा।” उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जातिवाद भारत की आत्मा पर सबसे बड़ा प्रहार है, और अब समय है राष्ट्र की राजनीति के पुनर्जागरण का। उन्होंने अपने वक्तव्य का समापन करते हुए लिखा “जब भारत एक होगा, तभी भारत श्रेष्ठ बनेगा,”।

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