लोहिया के विचारों का अपमान है सपा की जातीय राजनीति – डॉ. राजेश्वर सिंह

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ब्राम्ह अनुभूति अखबार यूपी लाइव न्यूज 24 उत्तर प्रदेश

संपादक प्रवीण सैनी

युवाओं को जाति में तोड़ने की नहीं, अवसरों से जोड़ने की राजनीति करे समाजवादी पार्टी – डॉ. राजेश्वर सिंह

लखनऊ सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर समाजवादी पार्टी की जातिवादी राजनीति पर जोरदार प्रहार करते हुए कहा कि, “जब जाति राजनीति का हथियार बन जाए, तो समाज रणभूमि बन जाता है!” डॉ. सिंह ने स्पष्ट किया कि समाजवादी पार्टी की विचारधारा राष्ट्रीय एकता के विपरीत और नवभारत के भविष्य के लिए घातक है। जातीय ध्रुवीकरण, वोट बैंक की सौदेबाज़ी और सामाजिक संघर्ष को भड़काने जैसी प्रवृत्तियाँ सपा की राजनीति का मूल तत्व बन चुकी हैं।

*जातिवाद नहीं, राष्ट्रवाद बने भारत का भविष्य :*
डॉ. सिंह ने सपा प्रमुख द्वारा बार-बार दिए जा रहे “PDA भारत का भविष्य है” जैसे बयानों की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि, “सपा की दृष्टि में देश की दिशा विकास के आंकड़ों से नहीं, बल्कि जातियों की गिनती से तय होती है। यह वह सोच है जो भारत को अखंड नहीं, खंड-खंड देखना चाहती है।”

*डॉ. राजेश्वर सिंह ने सपा की जातीय राजनीति के कई उदाहरण प्रस्तुत किए –*
1. *रामचरितमानस पर अपमानजनक टिप्पणियों पर मौन समर्थन* – सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस पर अमर्यादित वक्तव्यों पर सपा प्रमुख का मौन समर्थन और उन्हें ‘पिछड़ों की आवाज़’ बताना, सनातन संस्कृति का अपमान है।

2. *वीर राणा सांगा के अपमान पर चुप्पी* – सपा सांसद लालजी सुमन द्वारा राणा सांगा पर आपत्तिजनक टिप्पणी के बावजूद सपा प्रमुख ने न तो कोई कार्रवाई की, न ही उस बयान को ख़ारिज किया, न ही ऐतिहासिक मर्यादा की रक्षा की।

3. *इटावा की घटना को जातीय रंग देना -* इटावा में घटित एक आपराधिक घटना, जिसमें तत्काल पुलिस कार्रवाई हुई, को भी सपा प्रमुख ने जातीय संघर्ष में बदलने की कोशिश की।

4. *महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन पर दुष्प्रचार -* 2025 के प्रयागराज महाकुंभ को लेकर सपा द्वारा दुष्प्रचार चलाया गया और वहां पहुंचे 65 करोड़ सनातन श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुंचाने की कोशिश की गई।

*2012–17 : सपा शासन के जातीय पक्षपात की झलक* : डॉ. सिंह ने पूर्व सपा शासनकाल की नीतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि –
1. भर्तियों व नियुक्तियों में पक्षपात
2. प्रशासनिक पदों पर एक परिवार का प्रभुत्व
3. सैफई केंद्रित योजनाएं
4. विकास कार्यों में क्षेत्रीय असमानता
5. छात्रवृत्ति योजनाओं में जातिगत झुकाव
6. दंगों में पक्षपातपूर्ण रुख

*सच्चा समाजवाद या सपा का जातिवाद?*

डॉ. सिंह ने समाजवाद की अवधारणा पर विचार व्यक्त करते हुए कहा: “लोहिया जी का समाजवाद था – गरीबी हटाओ, जाति तोड़ो, न्याय दो लेकिन सपा ने इसे बना दिया – जातियों में बाँटो, वोट बैंक साधो, परिवारवाद फैलाओ।” उन्होंने डॉ. राममनोहर लोहिया और जॉर्ज फर्नांडिस के विचारों को उद्धृत करते हुए बताया कि, “जहाँ जातिवाद है, वहाँ समाजवाद नहीं हो सकता।” – जॉर्ज फर्नांडिस, जातिवाद, समाज की एकता का दुश्मन है।” – डॉ. लोहिया

समाजवादी पार्टी के लिए सुझाव: डॉ. सिंह ने रचनात्मक सुझाव भी दिए जाति नहीं, एकता की बात करें: युवाओं को तोड़ें नहीं, बल्कि जोड़ें: समाज को मज़बूत करें, कमजोर नहीं:विकास की राजनीति करें, नारेबाज़ी नहीं

उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर के इस कथन को स्मरण किया, “जातियों में बंटा समाज, कभी महान राष्ट्र नहीं बन सकता।” डॉ. सिंह ने अपने संदेश का समापन एक राष्ट्रवादी संकल्प के साथ किया, आइये हम टुकड़ों में भारतीय न बनें; हम पहले भारतीय बनें, मूल्यों से एकजुट हों, जातियों से विभाजित न हों। हम न जाति, क्षेत्र या भाषा से बंधे हैं, हम सबसे पहले और सबसे अंत में भारतीय हैं, यही हमारी पहचान है, यही हमारा गौरव, यही हमारी अस्मिता है।

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