ब्राम्ह अनुभूति अखबार यूपी लाइव न्यूज 24 उत्तर प्रदेश
ब्यूरो प्रमुख दुर्गेश अवस्थी
दुनिया के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक, व्लादिमीर पुतिन जब किसी कमरे में दाखिल होते हैं, रेड कार्पेट पर चलते हैं, या किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कदम रखते हैं, तो पूरी दुनिया की नजरें उन पर होती हैं. उनकी राजनीति, उनके फैसले और उनकी रणनीतियों पर तो चर्चा होती ही है, लेकिन एक और चीज है जिसने वर्षों से न्यूरोलॉजिस्ट्स, जासूसों और बॉडी लैंग्वेज एक्सपर्ट्स को उलझा कर रखा है. वह है पुतिन के चलने का तरीका.
अगर आपने कभी गौर किया हो, तो चलते समय व्लादिमीर पुतिन का बायां हाथ सामान्य रूप से आगे-पीछे झूलता है, लेकिन उनका दायां हाथ लगभग उनके शरीर से चिपका रहता है. वह स्थिर रहता है, मानो किसी अदृश्य वस्तु को पकड़े हुए हो. इसे विशेषज्ञों ने गनलिंगर गेट (Gunslinger Gait) यानी बंदूकधारी की चाल नाम दिया है. आखिर क्या है इस चाल का रहस्य? क्या यह पार्किंसंस जैसी कोई बीमारी है, या फिर सोवियत जासूसी संस्था KGB की उस खौफनाक ट्रेनिंग का हिस्सा, जो आज भी पुतिन के जेहन और शरीर से नहीं निकल पाई है?
चलने की तरीका अलग
सामान्य तौर पर, जब इंसान चलता है, तो शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए उसके दोनों हाथ विपरीत दिशा में हिलते हैं. जब बायां पैर आगे जाता है, तो दायां हाथ आगे आता है, और जब दायां पैर आगे जाता है, तो बायां हाथ. यह एक प्राकृतिक बायोमैकेनिकल प्रक्रिया है. लेकिन पुतिन के मामले में यह नियम टूट जाता है. आप यूट्यूब पर उनके वीडियो देखें, चाहे वह क्रेमलिन के गलियारों में चल रहे हों या किसी मिलिट्री परेड का निरीक्षण कर रहे हों. उनका बायां हाथ पूरी लय में झूलता है, लेकिन दायां हाथ उनकी कमर के पास, दाहिनी जांघ के बिल्कुल करीब स्थिर रहता है. वह बमुश्किल हिलता है.
हॉलीवुड फिल्म के ‘काउबॉय’ की याद दिलाती
यह चाल किसी हॉलीवुड फिल्म के ‘काउबॉय’ की याद दिलाती है, जो किसी भी पल अपनी कमर पर लटकी रिवॉल्वर को निकालने के लिए तैयार रहता है. इसी समानता के कारण इसे ‘गनलिंगर गेट’ कहा गया. शुरुआत में, पश्चिमी मीडिया और इंटरनेट पर कई तरह की अटकलें लगाई गईं. कुछ ने कहा कि उन्हें बचपन में पोलियो हुआ होगा, तो कुछ ने दावा किया कि उन्हें स्ट्रोक आया होगा. लेकिन सच्चाई इन मेडिकल अटकलों से कहीं ज्यादा दिलचस्प और ‘खतरनाक’ है.
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल’ का वो चौंकाने वाला अध्ययन
इस रहस्य से पर्दा उठाने की सबसे गंभीर कोशिश 2015 में हुई. पुर्तगाल, इटली और नीदरलैंड के न्यूरोलॉजिस्ट्स की एक टीम ने व्लादिमीर पुतिन के चलने के तरीके पर गहरा शोध किया और अपनी रिपोर्ट प्रतिष्ठित ‘ब्रिटिश मेडिकल जर्नल’ (BMJ) में प्रकाशित की. इस अध्ययन का नेतृत्व नीदरलैंड के रेडबौड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के प्रोफेसर बास्टियन ब्लोम कर रहे थे. उन्होंने और उनकी टीम ने पुतिन के दर्जनों वीडियो का विश्लेषण किया.
शुरुआत में डॉक्टरों को लगा कि यह पार्किंसंस रोग (Parkinson’s Disease) के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं. पार्किंसंस में अक्सर शरीर के एक हिस्से में अकड़न आ जाती है और हाथ का हिलना कम हो जाता है. लेकिन जैसे-जैसे उन्होंने पुतिन की अन्य गतिविधियों का विश्लेषण किया, यह थ्योरी खारिज हो गई.
क्यों नहीं है यह पार्किंसंस?
पुतिन के पास जुडो में ब्लैक बेल्ट है. वे वीडियो में विरोधियों को पटकते हुए, भारी वजन उठाते हुए और तैराकी करते हुए नजर आते हैं. उनके दाहिने हाथ में गजब की ताकत दिखती है और कंपनी बिल्कुल भी नहीं होता. वे अपने दाहिने हाथ से ही बिना किसी कंपन के हस्ताक्षर करते हैं. वे अपनी मीटिंग्स के दौरान दाहिने हाथ से तेजी से नोट्स लेते हैं. अगर उन्हें पार्किंसंस या स्ट्रोक होता, तो उनके दाहिने हाथ की मोटर स्किल्स इतनी बारीक और मजबूत नहीं होतीं. तो फिर कारण क्या था?
KGB मैनुअल और ‘किलर’ ट्रेनिंग
जब मेडिकल कारणों को खारिज कर दिया गया, तो शोधकर्ताओं ने पुतिन के अतीत के पन्नों को पलटना शुरू किया. और जवाब मिला शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी KGB के पुराने ट्रेनिंग मैनुअल में. व्लादिमीर पुतिन ने 16 साल तक KGB के लिए काम किया है. वे पूर्वी जर्मनी में तैनात थे और एक प्रशिक्षित जासूस थे. KGB के एजेंटों को एक खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती थी. शोधकर्ताओं को KGB का एक पुराना ट्रेनिंग मैनुअल मिला, जिसमें एजेंटों को चलने का तरीका सिखाया गया था.
जब आप चल रहे हों, तो अपने हथियार वाले हाथ (दाहिने हाथ) को छाती के करीब या अपनी कमर के पास स्थिर रखें. इसे ज्यादा न हिलाएं, ताकि जरूरत पड़ने पर आप पलक झपकते ही अपनी बंदूक (होल्स्टर से) निकाल सकें और दुश्मन पर फायर कर सकें.
यह ट्रेनिंग इसलिए दी जाती थी ताकि चलते-फिरते, भीड़भाड़ में या किसी मिशन के दौरान अगर अचानक हमला करना पड़े या खुद का बचाव करना पड़े, तो हाथ को बंदूक तक पहुंचने में एक मिलीसेकंड का भी अतिरिक्त समय न लगे. हाथ का हिलना मतलब समय की बर्बादी, और जासूसी की दुनिया में समय की बर्बादी का मतलब है… मौत.
यह एक बिहेवियरल अडॉप्टेशन है. विशेषज्ञों का मानना है कि पुतिन ने इतनी सख्ती से और इतने लंबे समय तक इस नियम का पालन किया कि यह उनकी ‘मसल मेमोरी’ का हिस्सा बन गया. भले ही आज वे जासूस नहीं हैं और राष्ट्रपति हैं, और भले ही आज उनकी कमर पर बंदूक नहीं लटकी होती (कम से कम सार्वजनिक रूप से), लेकिन उनका शरीर आज भी उसी तरह रिएक्ट करता है जैसे वह किसी मिशन पर हो.
सिर्फ पुतिन ही नहीं, अन्य रूसी अधिकारी भी हैं इसमें शामिल
इस थ्योरी को और बल तब मिला जब शोधकर्ताओं ने पाया कि पुतिन अकेले ऐसे रूसी नहीं हैं जो इस तरह चलते हैं. रूस के पूर्व प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव, पूर्व रक्षा मंत्री अनातोली सेरद्युकोव और सर्गेई इवानोव (KGB के पूर्व अधिकारी) भी लगभग इसी अंदाज में चलते हैं. यहां एक दिलचस्प पेंच है. पुतिन और इवानोव तो KGB में थे, इसलिए उनकी चाल समझ में आती है. लेकिन मेदवेदेव का कोई सैन्य या जासूसी बैकग्राउंड नहीं रहा है. वे तो वकील थे. फिर मेदवेदेव वैसी ही चाल क्यों चलते हैं?
इसके लिए मनोवैज्ञानिकों ने बॉस की नकल का सिद्धांत दिया. मनोविज्ञान कहता है कि जब कोई व्यक्ति किसी बहुत प्रभावशाली लीडर के अधीन काम करता है या उससे प्रभावित होता है, तो वह अनजाने में या कभी-कभी जानबूझकर उसके हाव-भाव, बोलने का तरीका और चलने का अंदाज कॉपी करने लगता है.
मेदवेदेव के मामले में, यह माना जाता है कि उन्होंने शक्तिशाली दिखने के लिए पुतिन की चाल को अपनाया. यह रूस में सत्ता के गलियारों में वफादारी और ताकत दिखाने का एक तरीका बन गया. पुतिन की चाल ‘अल्फा मेल’ की निशानी बन गई, जिसे उनके वफादारों ने अपना लिया.
वाइल्ड वेस्ट का काउबॉय बनाम सोवियत जासूस
गनलिंगर गेट शब्द अमेरिकी ‘वाइल्ड वेस्ट’ के दौर से आया है. पुराने जमाने में अमेरिका में काउबॉय अपनी पिस्तौल अपनी कमर के निचले हिस्से पर बांधते थे. द्वंद्व युद्ध के दौरान, जो जितनी जल्दी पिस्तौल निकालता, वही जिंदा बचता. इसलिए वे चलते समय अपने दाहिने हाथ को होल्स्टर के पास ही रखते थे.
यह देखना कितना विरोधाभासी और दिलचस्प है कि अमेरिका का कट्टर विरोधी रहा सोवियत संघ और उसका सबसे बड़ा जासूस, अमेरिकी काउबॉय जैसी तकनीक का इस्तेमाल करता था. फर्क सिर्फ इतना है कि काउबॉय इसे खुलेआम करते थे, और KGB एजेंट्स इसे गुप्त ऑपरेशन्स के लिए सूट-बूट के नीचे छिपाकर करते थे.
पुतिन की ‘माचो मैन’ छवि और यह चाल
व्लादिमीर पुतिन अपनी छवि को लेकर बेहद सजग रहते हैं. दुनिया ने उन्हें भालू की सवारी करते , साइबेरिया में शर्ट उतारकर मछली पकड़ते, फॉर्मूला-1 कार चलाते और बाघ को बेहोश करते हुए देखा है. यह बंदूक वाली चाल उनकी इस कठोर और मजबूत नेता की छवि में पूरी तरह फिट बैठती है. एक हाथ का आजाद झूलना और दूसरे का स्थिर रहना कंट्रोल को दर्शाता है. यह दिखाता है कि उनका अपने शरीर और अपने आस-पास के माहौल पर पूरा कंट्रोल है.
क्या कोई और कारण भी हो सकता है?
हालांकि KGB ट्रेनिंग वाली थ्योरी सबसे ज्यादा मान्य है, लेकिन कुछ अन्य सिद्धांत भी समय-समय पर सामने आते रहे हैं, जिन्हें पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता.
एर्ब्स पाल्सी थ्योरी: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हो सकता है पुतिन को जन्म के समय ‘शोल्डर डिस्टोसिया’ हुआ हो, जिससे उनके दाहिने कंधे की नसों में खिंचाव आ गया हो. इससे हाथ की मूवमेंट थोड़ी सीमित हो सकती है. लेकिन चूंकि वे जुडो में इसी हाथ का इस्तेमाल बखूबी करते हैं, इसलिए यह थ्योरी कमजोर पड़ जाती है.
चोट का निशान: पुतिन जुडो फाइटर रहे हैं. हो सकता है कि जवानी के दिनों में ट्रेनिंग के दौरान उनके दाहिने कंधे या बांह में कोई गंभीर चोट लगी हो, जिसकी वजह से वह चलते समय उसे स्थिर रखना पसंद करते हों ताकि दर्द न हो या आदत बन गई हो.लेकिन प्रोफेसर ब्लोम और उनकी टीम का तर्क है कि अगर यह चोट होती, तो हाथ की ताकत कम होती, जबकि पुतिन का दाहिना हाथ बेहद मजबूत है. इसलिए, ‘बिहेवियरल अडॉप्टेशन’ यानी ट्रेनिंग ही सबसे सही जवाब लगता है.